रामचरितमानस का प्रतिपाद्य
हिंदी साहित्य का भक्तिकालीन युग दो वर्गों में विभक्त है - सगुण भक्ति शाखा तथा निर्गुण भक्ति शाखा | सगुण भक्ति शाखा के उपासक अपने आराध्य के सगुण स्वरूप की आराधना करते हैं | इनके आराध्य साकार रूप में सर्वगुण संपन्न हैं | सगुण भक्ति शाखा की दो उपशाखाएं हुई - राम भक्ति उपशाखा तथा कृष्ण भक्ति उपशाखा | रामभक्ति उपशाखा के कवि मर्यादा पुरुषोत्तम राम की उपासना करते हैं वही कृष्णभक्ति उपशाखा के कवि सगुण स्वरूप कृष्ण की उपासना करते हैं | निर्गुण भक्ति धारा के कवि ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना करते हैं | इस संप्रदाय के कवि ज्ञान अथवा प्रेम के माध्यम से ईश्वर के साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं | निर्गुण भक्ति की दो उपधाराएं ज्ञानमार्गी तथा प्रेममार्गी है | ज्ञानमार्गी ने जनता को विचार के स्तर पर प्रभावित किया तथा प्रेममार्गी कवियों ने अपने प्रेमाख्यानों के द्वारा लोकमानस को भावना के स्तर पर प्रभावित किया | रामानुजाचार्य ने शंकराचार्य के भक्ति दर्शन अद्वैतवाद का खंडन करने के लिए विशिष्टाद्वैत दर्शन तथा श्री संप्रदाय की स्थापना की | उन्हीं के भक्त परंपरा में रामानंद ने रामभक्ति शाखा की स्थापना...