यशोधरा काव्य का प्रतिपाद्य

 यशोधरा काव्य का प्रतिपाद्य

 यशोधरा काव्य का प्रणयन (रचना/लिखना) करने के पीछे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का मूल उद्देश्य गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के त्याग, बलिदान, समर्पण और कर्तव्यनिष्ठता का निरूपण करना है। इस काव्य में मूल रूप से बौद्ध धर्म और वैष्णव धर्म को समानांतर रूप से रेखांकित किया गया है। मैथिलीशरण गुप्त वैष्णव भक्त थे। यशोधरा काव्य में भी उनकी वैष्णव भक्ति स्थान-स्थान पर प्रकट हुई है। कई जगहों पर जब वैष्णव धर्म और बौद्ध धर्म की टकराहट होती है तब वहां मैथिलीशरण गुप्त वैष्णव धर्म की श्रेष्ठता स्थापित करते हैं। बौद्ध धर्म का मूल प्रतिपाद्य मुक्ति है और वैष्णव धर्म मुक्ति के स्थान पर भक्ति की कामना करता है इस काव्य के मंगलाचरण में गुप्तजी ने लिखा है
मुक्ति, मुक्ति मांगू क्या तुझसे
हमें भक्ति दो ओ अमिताभ।
आगे चलकर इस काव्य में गौतम बुद्ध के चरित्रों की श्रेष्ठता तो दिखलाई जाती है लेकिन यशोधरा जो कि वैष्णव धर्म के सिद्धांतों को मानने वाली है उसके विचारों की श्रेष्ठता बौद्ध धर्म से उपर रखी गयी है। बौद्ध धर्म में मनुष्य के जिस वृद्धावस्था को लेकर चिंतन किया गया है। उसे जीवन का दुखद अवस्था कहा गया है। वैष्णव मत के अनुसार यशोधरा कहती है कि वह विश्राम की अवस्था है। वह चिंता की नहीं चिंतन की अवस्था है। बौद्ध धर्म में मृत्यु को लेकर स्थान-स्थान पर संत्रास दिखलाया गया है लेकिन वैष्णव धर्म की मान्यता है की मृत्यु मनुष्य का शारीरिक परिवर्तन मात्र है। और इन्हीं भावों की श्रेष्ठता स्थापित करते हुए गुप्तजी ने वैष्णव धर्म को अधिक महत्व दिया है। भगवान बुद्ध से संबंधित कथा को लेने के बावजूद गुप्त जी का मूल उद्देश्य बुद्ध के चरित्र का विकास या उसकी कथा कहना नहीं है। वे एक भारतीय पौराणिक रमणी के चारित्रिक विशेषताओं को रूपायित करना चाहते हैं। गुप्तजी ने स्वयं इस तथ्य को स्वीकार किया है कि 'यशोधरा' और 'साकेत' काव्य के प्रणयन के पीछे महावीर प्रसाद द्विवेदी का वह निबंध जिसे महावीर प्रसाद द्विवेदी ने रविंद्रनाथ टैगोर के प्रश्नों को सामने रखकर लिखा था। जिसमें यह प्रश्न उठाया गया था कि हिंदी साहित्य में पुराने समय से ही साहित्यकारों ने राम, कृष्ण, बुद्ध जैसे अनेक चरित्र नायकों का चित्रण किया है। एक से बढ़कर एक ग्रंथों का सृजन किया है। उन कवियों का हृदय जो क्रौंच (पक्षी) वध से आहत हो उठते हैं, छोटे-छोटे जीव-जंतुओं का पीड़ा नहीं देख पाते हैं वे कैसे इस तथ्य को नजरअंदाज कर जाते हैं कि इन सभी कथा नायकों की पत्नियों ने  उनके जीवन गाथा में अपनी भूमिका निभाते हुए किस तरह से उनको शक्ति प्रदान की। अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहन किया, किस तरह का कष्ट सहा, वह कवियों के हृदय को क्यों नहीं पिघला सका ? कथा नायक के रूप में उन नायकों को इतना प्रश्रय मिला तो फिर इन नायिकाओं का चित्रण कहीं-कहीं थोड़ा बहुत कर देने मात्र से कवि खुद को उऋण कैसे समझने लगे ? इन्हीं तथ्यों पर सोचते-विचार हुए लक्ष्मण की पत्नी 'उर्मिला' के विरह  का वर्णन मैथिलीशरण गुप्त ने 'साकेत' में किया है। यशोधरा काव्य का सृजन गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के चरित्र को रूपायित करने के निमित्त किया गया है। गौतम बुद्ध गृह त्याग कर चले जाते हैं उसके बाद यशोधरा ने घर-परिवार, गौतम बुद्ध की सारी जिम्मेदारियां, छोटे शिशु राहुल की जिम्मेवारी आदि जिस तरह से निभाई उसका वर्णन करते हुए यशोधरा के कर्तव्यनिष्ठता का वर्णन किया गया है। एक नई नवेली पत्नी को पति के द्वारा त्याग देने पर जिस बिरहाग्नि में जलना पड़ा उसका कारुणिक वर्णन इस काव्य में स्थान-स्थान पर किया गया है।
इस काव्य में दो चीजों को प्रमुखता से महत्व दिया गया है। एक तो यशोधरा के चरित्र को जो कि पौराणिक भारतीय रमणी का उदात्त-चरित्र रहा है। दूसरा वैष्णव धर्म की महत्ता स्थापित की गई है। यहां दिखलाया गया है कि बौद्ध धर्म या फिर दूसरे अन्य धर्मों के अपेक्षा वैष्णव धर्म कितना तार्किक और वैज्ञानिक ठहरता है। मैथिलीशरण गुप्त ने इस काव्य के माध्यम से भगवान बुद्ध की पत्नी यशोधरा के चरित्र को महिमामंडित किया है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जैनेन्द्र की 'पत्नी' कहानी का समीक्षात्मक परिचय ।

विष्णु प्रभाकर रचित 'मां' एकांकी का केंद्रीय भाव