'युग का जुआ' (हरिवंश राय बच्चन) कविता का भावार्थ



'युग का जुआ' हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश राय 'बच्चन' की एक प्रसिद्ध कविता है | बच्चन जी हिंदी कविता में हालावाद के प्रवर्तक के रूप में जाने जाते हैं | बच्चन मूलत: प्रेम और मस्ती के गायक हैं, लेकिन उनकी कई कविताएं ऐसी भी है, जो समाज को प्रेरित और जागृत करने का कार्य करती है | देश के युवा (युवक) अपने उत्साह और कार्य-क्षमता से देश और समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं |परिवर्तन की क्षमता यदि कहीं है, तो समाज के युवकों के भीतर है | वही समाज में परिवर्तन की दिशा तय कर सकता है | जितना यह सच है कि युवा कठोर परिश्रमी होते हैं, उतना ही यह भी कि वह स्वप्न जीवी होते हैं | क्षणभर में ही उनका उत्साह मंद पड़ जाता है | 
इस कविता में युवकों को प्रेरित करते हुए बच्चन जी कहते हैं कि हे देश के युवा ! तुम्हारे कंधों पर ही देश और समाज को चलाने की जिम्मेदारी है | कर्तव्य रूपी इस गाड़ी को तुम्हें ही खींच कर आगे ले जाना है | युवाओं से वे कहते हैं कि तुम्हारे कंधे वृषभ (बैल) के कंधों की तरह मजबूत हैं | तुम हुमककर (जोर लगाकर) गाड़ी के 'जुआ' (बैलगाड़ी का वह भाग जो बैल के कंधे पर रखा जाता है उसे 'जुआ' कहते हैं ) को अपने कंधे पर ले लो और चल पड़ो | आगे-पीछे मत देखो, बगले मत झांको, उत्साह पूर्वक आगे बढ़ो | अर्थात सोच विचार में समय व्यर्थ मत करो, तुरंत अपनी जिम्मेदारी निभाने में लग जाओ |
बच्चन जी कहते हैं कि आंखें मत झुकाओ अर्थात कर्तव्य से मुंह मत मोड़ो | तुम्हारे सामने युग का जुआ (समाज रूपी गाड़ी का जुआ) पड़ा हुआ है उसे अपने कंधों पर उठा लो और यह शकट (गाड़ी) जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने अनेक गहरी खाई और दुर्गम पहाड़ों से होते हुए करोड़ों संकटों से उबारकर यहां तक लाया है उसे आगे बढ़ाओ | 
इस तरह से देश के युवाओं को प्रेरित करते हुए बच्चन जी उसे उसके पूर्वजों के कर्म बतलाते हुए कहते हैं कि भरी दोपहरी में वह चमचमाती वस्तु जो तुम देख रहे हो, वह कोई जल नहीं है, ना हीं बर्फ है और ना कोई जगमग करता हुआ मोती है | वह तुम्हारे पूर्वजों की अस्थियां है, जिसे उन्होंने गाड़ी को यहां तक ही चलाने में अर्थात देश-समाज को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाने में विसर्जित कर दी है | वे कहते हैं कि ध्यान से देखो उस जुआ पर तुम्हें उनके पराक्रम की कहानी लिखी मिलेगी | वे अस्थियां मुर्दा नहीं है, वह बोलती हैं, कहती हैं कि जिस गाड़ी को खींचकर हम यहां तक लाए हैं, उसे तुम आगे बढ़ाओ | उसे खींचकर चोटियों तक ले जाओ | 
कवि देश के युवाओं को कर्तव्य के प्रति जागृत करते हैं | वे युवाओं को ललकारते हैं कि तुम्हारे पूर्वजों ने अपने रक्त और श्वेद से सींच कर समाज को यह मुकाम दिलाया है | विकास के इस पथ को अवरुद्ध मत होने दो | इस गाड़ी को रुकने मत दो | अपने कंधों के जोर से इसे आगे बढ़ाओ | आगे बच्चन जी कहते हैं कि यदि तुम्हारी शिराओं (नाड़ी/नस) में अपने पूर्वजों का गंभीर स्वर गूंज रहा है, तुम्हारी हड्डियों में उनके अस्थियों की नाद (गूंज) उमर रही है तो तुम डरो नहीं | अपने कंधों पर युग का जुआ उठा लो और आगे बढ़ो | 
बच्चन जी देश के युवाओं को ललकार विकास-पथ पर अग्रसर करते हैं लेकिन उन्हें बराबर यह चिंता सालती रहती है कि यह सफर आसान नहीं है, कहीं युवक बीच में ही थक कर बैठ न जाए | विकास के पथ से विमुख न हो जाए | वे कहते हैं कि यह सफर बहुत लंबा और मेहनत वाला है | इस सफर में तुझे (युवाओं को) एड़ी चोटी का जोर लगाना होगा | दम साध कर खून-पसीना एक करना पड़ेगा | 
बच्चन जी कहते हैं कि यह सफर इतना मेहनत वाला है कि मुंह से आवाज नहीं सिर्फ मेहनत करते समय बहने वाला झाग निकलेगा | बोलने से शक्ति क्षीण होती है और इस कार्य में बहुत अधिक बल लगाने की आवश्यकता है | इस पथ पर (विकास के पथ पर) चलने वालों को हर तरह की सुख-सुविधा का मोह त्यागना पड़ता है | मेहनत से सांसें फूल रही होती है और उस वक्त फूलों की सुगंध कहां मिल पाती हैं ? जिनकी आंखें लक्ष्य पर टिकी हो वे सजीलापन नहीं दे पाते हैं | 
बच्चन जी देश के मेहनतकश युवाओं से कहते हैं कि आओ मैं तुम्हारे गली में एक घंटी बांध देता हूं (जैसे बैलों के गले में घंटी बंधी होती है ) | वह घंटी तुम्हारे परिश्रम के समय मधुर तान बनकर मन को पुलकित करेगी | वह गुंजकर पहाड़ों को तुम्हारे कठिन संघर्ष की कहानी सुनाएगी|
अंत में बच्चन जी युवाओं को अलविदा कहते हैं | वह कहते हैं कि तुम सफर पर जाओ | युग के जुआ को जयमाला समझकर गले में डाल लो और विकास पथ पर युग की गाड़ी को बढ़ाएं चलो |

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 17 अप्रैल 2021 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता भी दी होती तो बेहतर होता ... बहुत सही भावार्थ

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जैनेन्द्र की 'पत्नी' कहानी का समीक्षात्मक परिचय ।

यशोधरा काव्य का प्रतिपाद्य

विष्णु प्रभाकर रचित 'मां' एकांकी का केंद्रीय भाव