सोन मछली (अज्ञेय) कविता का केंद्रीय भाव
अज्ञेय प्रयोगवाद के प्रतिनिधि कवि हैं। प्रयोगवाद में आत्मपरिचय और व्यक्तिक-स्वतंत्रता का स्वर प्रमुख रहा है। जो मनुष्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता का पक्षधर है सृष्टि के समस्त प्राणी मात्र को स्वतंत्र रूप में देखने का पक्षधर होता है। आत्मपरिचय में इन कवियों की दृष्टि इस ओर अधिक विस्तृत थी कि सृष्टि का परिचय पाने से पहले अपना परिचय पाना कहीं आवश्यक है। कविता की व्याख्या के क्रम में एक बात ध्यान देने योग्य होती है कि लिखते समय कवि की मनोवृति उस कविता को लेकर जो भी रही हो व्याख्या के क्रम में कविताएं कई अर्थ प्रकट करती हैं। कविता की भाषा लाक्षणिक और विशेषत: व्यंजनात्मक होती है। व्यंजना शब्द शक्ति की यह खासियत है कि वह एक-एक शब्द के कई-कई अर्थ प्रदान करती है। साहित्य की किसी विधा विशेष तौर पर कविता की व्याख्या के दौरान यह देखने में आता है कि अलग-अलग व्याख्याकारों की दृष्टिकोण के आधार पर एक ही कविता के कई अर्थ प्रकट होते हैं। नई कविता या प्रयोगवादी कविता तो विशेष तौर पर अपने प्रतीकात्मक रूपों के लिए ही जानी जाती है और प्रतीकात्मक रूप में शब्द के अनेक अर्थ प्रकट करती हैं।
सोन मछली अज्ञेय की एक बहुत ही छोटी सी कविता है। लेकिन इस कविता का फलक जितना छोटा है इसकी अर्थ व्यंजना उतनी ही विस्तृत है। आधुनिक युग में एक चीज देखने को मिली है कि मनुष्य सृष्टि के समस्त जीव-जंतुओं को गुलामी की जंजीर में बांध देना चाहता है। सोचनिय है कि सृष्टि के सभी प्राणियों में सर्वप्रथम गुलाम मनुष्य ही हुआ और वह धीरे-धीरे सृष्टि के प्रत्येक प्राणी को गुलामी की जंजीर में जकड़ देने पर आमादा हो उठा। शहरी जीवन में इसे और अधिक गहराई से देखी जा सकती है। लोग जीव-जंतुओं को पालते हैं, उसे अपना आश्रित बनाकर रखते हैं। सृष्टि के जो जीव-जंतु, पशु-पक्षी स्वाबलंबी हुआ करते थे। अपना स्वतंत्र जीवन जीते थे उन्हें कैद करके मनुष्य गुलाम के रूप में जीवित रखने पर उतारू है। कहीं यह मानवीय शौक के लिए है तो कहीं सौंदर्य प्रसाधन के लिए। इसी का एक रूप हम देखते हैं किस शहर के घरों में खूबसूरत मछलियों को शीशे में बंद करके रख दिया जाता है जिससे कि वह घर की शोभा बढ़ा सके। मछलियों का वास्तविक जीवन खुले जल में है लेकिन उसे हम खुले जल से निकालकर एक शीशे के बक्से में बंद कर देते हैं। क्योंकि खुले जल के लिए जगह तो शहर ने छोड़ नहीं रखा है। पक्षियों को पिंजरे में, पशुओं को जंजीर में और मछलियों को शीशे के बक्से में कैद करके लोग अपने शौक को पूरा कर रहे हैं।
सोन मछली देखने में काफी आकर्षक होती है। उसका रूप लावण्य मानवीय दृष्टि को सम्मोहित करने की क्षमता रखता है। शीशे में बंद मछली के रूप को देखते हुए अज्ञेय की कवि दृष्टि यह सहज ही देख लेती है कि शीशे के उस पार तैरती मछली का सौंदर्य तो हम देख पाते हैं लेकिन उस कैद में वह किस तरह छटपटा रही है, कैसे उसकी सांसें फूल रही है और इसके बावजूद उसके अंदर जिजीविषा यानी जीने की इच्छा मौजूद है इसे नहीं देख पाते हैं। कैद में छटपटाती हुई मछली की बेबसी को यदि समझ पाता तो मनुष्य उसे कैदी की तरह नहीं रखता। अज्ञेय की संवेदनशीलता है कि वे सौंदर्य प्रसाधन के रूप में रखे हुए उस मछली की व्यथा को इतनी सहजता से महसूस कर लेते हैं। और इस भाव को कविता के रूप में उकेर देते हैं।
यहां कैद में तड़प रहे एक जीव के स्वतंत्रता के पक्ष को देखना कवि की दृष्टि का एक पक्ष है। प्रतीकात्मक रूप में उनका दूसरा पक्ष यह भी है कि मनुष्य उस सुंदरता को देख पाता है जो शीशे के उस पार है लेकिन वास्तविक सौंदर्य तक उसकी नजर नहीं पहुंच पाती है। सृष्टि की वास्तविक सुंदरता स्वतंत्रता है चाहे वह मनुष्य की स्वतंत्रता हो या फिर किसी अन्य जीव की। मनुष्य की आत्मा उसके शरीर के अंदर कैद है, अपनी इच्छाओं का धीरे-धीरे दम घोंट रहा है। और बाहर-बाहर से अपने रूप को सवारने में, प्रदर्शन करने में समय व्यतीत करता है। कवि चाहते हैं कि मनुष्य अपनी आत्मा की आवाज सुने। आत्मा की छटपटाहट को महसूस करे जो सोन मछली की तरह शीशे में कैद है अर्थात शरीर के भीतर कैद है। वह तड़प रहा है बेचैन है लेकिन कोई उसकी बेचैनी को समझने को प्रस्तुत नहीं है। बस बाहर ही बाहर उसे देखकर आनंदित होता है। उसके रूप-आकर्षण के मोह में बंधक बना रहता है।
कविता का केंद्रीय भाव यह है कि मानवीय दृष्टि इतनी संकुचित हो गई है कि वह मनुष्य और अन्य मानवेतर प्राणियों के बाहरी रूप को देखकर ही संतुष्ट हो जाता है उसके अंदर की छटपटाहट और बेचैनी को नहीं देख पाता है।
कैद में पड़ी वह मछली हो या फिर अपनी कुंठाओं, अतृप्त ईक्षाओं के कैद में पड़ा मनुष्य दोनों छटपटा रहे हैं। लेकिन उस छटपटाहट से बड़ी उनकी जीने की इच्छा है। उनकी इस जिजीविषा को महसूस करना समग्र दृष्टि का परिचायक है।
नयी कविता के दौर में आकर कविताओं के स्वरूप में काफी परिवर्तन हुये हैं। कई कविताएं अपने स्वरूप में अत्यधिक लंबी हैं तो कई कविताएं इतनी छोटी की कुछ पंक्तियां या कुछ शब्दों में सिमटी हुई है । लेकिन इन छोटी-छोटी कविताओं के भाव इतने व्यापक हैं कि यह समग्रता से मानवी जीवन के कई पक्षों को अपने भीतर समेटे होती हैं। इन कविताओं में नए प्रतीकों के माध्यम से मानवीय संवेदनाओं को जागृत करने का जो प्रयत्न किया गया है वह अद्भुत है।
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